
सरकार पूजा स्थल क़ानून 1991 को खत्म करने की साज़िश रच रही है।न्यायपालिका के एक हिस्से की भूमिका भी संविधान और क़ानून के स्थापित मानदंडों के अनुरूप नहीं दिख रही है। अल्पसंख्यक कांग्रेस इस क़ानून का उल्लंघन करने वालों के विरुध सख़्त कार्यवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हर ज़िले से पोस्ट कार्ड भिजवाने का अभियान चलायेगा।
ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस बरेली के ज़िलाध्यक्ष जुनैद हुसैन ने आज प्रेस कांग्रेस में कहीं। उन्होंने कहा कि पूजा स्थल क़ानून 1991 स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों की जो जो स्थिति रही है वह यथावत बनी रहेगी। उनके चरित्र में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। उसे परिवर्तित करने के लिए दिया गया कोई भी आवेदन किसी अदालत, ट्रीब्यूनल या प्राधिकार में भी स्वीकार्य नहीं होगा। इसीतरह मोहम्मद असलम भूरा बनाम भारत सरकार मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने 1997 के अपने फैसले में कहा है कि बनारस के काशी विश्वनाथ, ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के कृष्ण मंदिर और शाही ईदगाह पर यथास्थिति बनी रहेगी और कोई भी अधिनस्त अदालत इस फैसले के विपरीत आदेश नहीं दे सकता। वहीं बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि फैसले में भी पूजा स्थल क़ानून के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे संविधान के मूल चरित्र का हिस्सा बताया गया है।
उन्होंने कहा कि इन स्पष्ट फैसलों के बावजूद कुछ निचली अदालतों ने राजनीति से प्रेरित ऐसी याचिकाओं को स्वीकार कर स्थापित क़ानून के विपरीत आदेश दिये हैं। अल्पसंख्यक कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को हर ज़िले से पोस्ट कार्ड भिजवा कर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अवमानना करने वाले अधिनस्त जजों के खिलाफ़ कार्यवाई की मांग करेगा। यह अभियान अगले एक महीने तक चलेगा।
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