
5 जून का दिन पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व समुदाय को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। वर्तमान समय में पर्यावरण का बढ़ता प्रदूषण सभी के लिए गम्भीर चिन्ता का विषय है।
रामचरित मानस में एक चौपाई है “-क्षिति, जल, पावक, गगन समीरा, पांच तत्त्व मिलि बनेउ शरीरा।” जिस प्रकार वायु, जल, मिट्टी, अग्नि और आकाश से मिलकर हमारा शरीर बना है ठीक उसी प्रकार इन्हीं पांच तत्वों से मिलकर हमारा पर्यावरण बना है। आज पर्यावरण के यह पांचों तत्व बुरी तरह से प्रदूषित हो गए हैं जिससे पृथ्वी पर मानव और प्राणियों के अस्तित्व को ही गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
वर्ष 2022 के पर्यावरण दिवस की थीम है-“ओनली अर्थ अर्थात् केवल पृथ्वी।“ पृथ्वी सौरमण्डल का एकमात्र ऐसा अनूठा ग्रह है जिस पर जीवन है। इसलिए पृथ्वी पर जीवन की प्रक्रिया और मानव तथा प्राणियों के अस्तित्व को बचाए रखना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। इसके लिए पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने के कारगर उपाय ढूढ़ने होंगे।
आदिकाल से ही मानव एवं प्रकृति के मध्य रागात्मक सम्बन्ध रहा है। हमारे पूर्वज प्रकृति के सानिध्य में रहकर सुखद एवं स्वस्थ, जीवन व्यतीत करते थे। हमारी सनातन संस्कृति में वायु, जल, अग्नि, वनस्पति को देवता की संज्ञा दी गई है और उनकी पूजा करने की परम्परा है। धरती को माँ तथा नदियों को मोक्षदायिनी माना गया है। यह हमारे पूर्वजों की पर्यावरण संरक्षण के प्रति व्यापक एवं दूरदर्शी सोच को प्रकट करता है।
प्रकृति के समस्त घटक जैसे मानव, विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, वनस्पति, पेड़-पौधे तथा नदियां-झीलों, कुएं-बावड़ी सब अपने अस्तित्व के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं। सबका संरक्षण करके ही हम पर्यावरण को संरक्षित रख सकते हैं। इसलिए पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए हमें एक बार फिर प्रकृति के सानिध्य में जाना होगा।
सुरेश बाबू मिश्रा