पिछले कुछ वर्षो से डायबिटीज रिवर्सल चर्चा का विषय बना है। डायबिटीज को पूरी तरह ठीक करने के दावे भी किए जा रहे हैं। क्या वाकई डायबिटीज को पूरी तरह ठीक जा सकता है ? या बेहतर प्रबंधन से  रोग पर काबू पाया जा सकता है और दवाईयो पे निर्भरता कम की जा सकती है

इस विषय पर जानकारी दे रहे है बरेली शहर के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. हारून  इकबाल

देश में डायबिटीज की बीमारी से जुड़े आंकड़े चिंताजनक है। IDF डायबिटीज एटलस के अनुसार, भारत में 7 करोड़ 70 लाख डायबिटीज के मरीज है। अनुमान है कि अगले 25 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 13 करोड़ 40 लाख से ज्यादा हो जाएगा। डायबिटीज का लाइलाज होना इसे और गंभीर बना देता है। बीते वर्षों से ‘डायबिटीज़ रिवर्सल ‘ शब्दावली की चिकित्सा जगत में बहुत चर्चा है। इसे सुनकर लगता है कि डायबिटीज को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है, पर इस संबंध में कुछ बातों को समझना जरूरी है

डायबिटीज  क्या है

डायबिटीज उस स्थिति को कहते हैं जब अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का निर्माण नहीं करता है या इंसुलिन का निर्माण तो होता है, पर शरीर उसे ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इससे रक्त में शुगर का स्तर आसामान्य हो जाता है। इंसुलिन हार्मोन ही शुगर के स्तर को नियंत्रित रखता है।

डायबिटीज दो तरह की होती है।

टाइप 1

डायबिटीज में अग्नाशय इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनाता है या कम मात्रा में बनाता है। ऐसे में इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। बच्चों में ऐसा अधिक होता है।

 टाइप-2  

डायबिटीज में अग्नाश्य इंसुलिन तो बनाता है. पर शरीर सही से इस्तेमाल नहीं कर पाता। इंसुलिन सही से काम कर सके, इसके लिए दवाएं दी जाती है। एक प्री-डायबिटीज स्थिति भी है। यह टाइप-2 डाक्टोज होने से पहले की स्थिति है।

दूसरे अंगों को भी प्रभावति करती है यह बीमारी

अनियंत्रित डायबिटीज का असर शरीर के दूसरे अंगों पर भी पड़ता है। इसीलिए इसे मेटाबॉलिक सिंड्रोम कहा जाता है। लंबे समय तक शुगर का अनियंत्रित रहना दिल के रोगों का खतरा बढ़ा देता है, खासकर साइलेंट हार्ट अटेक की आशंका बढ़ती है। हृदय की तंत्रिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती है। आंखों पर भी बुरा असर होता है। कुल दृष्टिहीनता के मामलों में 2.6 प्रतिशत डायबिटीज से होते हैं। शुगर का बढ़ना पैरों को तंत्रिकाओं पर भी बुरा असर डालता है। पैरों में

रक्त का प्रवाह कम होने से पैरों में दर्द, सूजन व फुट अल्सर का खतरा बढ़ जाता है टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ितों में डायबिटिक नेफ्रोध की आशंका 40 प्रतिशत तक और टाइप 2 में 20-30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसके कारण डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ सकती है। दिमाग पर इसका असर अल्जाइमर और डिमेशिया के

रूप में दिख सकता है।

टाइप 2  में होता है डायबरटीज रविर्सल

डायबिटीज रिवर्सल उस स्थिति को कहते हैं, जब मरीज का शुगर लेवल सामान्य रेंज में हो और उसे दवाएं लेने की जरूरत न पड़े। लेकिन, ऐसे में शरीर में डिजीज मेकेनिज्म और पैथोलॉजी बनी रहती है। किसी भी बीमारी के लिए क्योर शब्दावली तभी इस्तेमाल की जाती है, जय यह कभी दोबारा न हो, लेकिन डायबिटीज रिवर्सल में दोबारा होने का खतरा बना रहता है। डायबिटीज रिवर्सल टाइप-2 डायबिटीज में होता है। टाइप 1 डायबिटीज में मरीज इंसुलिन पर निर्भर होता है

डायबिटीज मैनेजमेंट

  • अच्छे प्रबंधन के लिए जरूरी है नियत समय पर सोये जागे और खाए।
  • अंगूर, अनन्नास चीकू केला आम की बजाय से मौसी अमरूद, नाशपाती अनार व पपीता खाएं।
  • मौसमी सब्जियाँ, साबुत अनाजों और दालों को डाइट में शामिल करें।
  • अरबी आलू मांस प्रोसेस्ड फूड्स न खाए।
  • अधिक तला-भुना न खाएं।
  • चीनी व कृत्रिम स्विटनर्स कम खाएं।  
  • तंबाकू और शराब का सेवन न करें।
  • 7-8 घंटे की नींद लें।
  • तनाव न पालें, मानसिक शांति के लिए ध्यान करें।
  • सप्ताह में पांच दिन 30 मिनट व्यायाम करें।

इस दौरान इंसुलिन की जरूरत या तो बिल्कुल नहीं होती या बहुत थोड़ी होती है। टाइप-2 डायबिटीज में डायबिटीज रिवर्सल लंचा चलता है। डायबिटीज के बाद जितनी जल्दी इसके रिवर्सल की कोशिश होती है, परिणाम उतने अच्छे आते हैं। इसमें चार चीजें प्रमुख है।

  1. उचित खानपान
  2. स्वस्थ्य जीवनशैली
  3. सामान्य भावनाएं रखना
  4. नियमित व्यायाम करना

डायबिटीज रिवर्सल तभी हो पाता हे, जब मरीज डॉक्टर की देख-रेख में इन चारों चीजों पर काम करता हे।

कया दोबारा हो सकती है डायबिटीज

डायबिटीज रिवर्सल के कुछ समय बाद कई लोग दोबारा डायबिटीज के शिकार हो जाते हैं। डॉक्टर एबीसीडी मानदंड के अनुसार निर्धारित करते हैं कि इन लोगों के दोबारा डायबिटीज की आशंका अधिक हो सकती है

A- ऐज : जिन्हें बहुत कम उम्र मे जैसे 20-22 वर्ष में डायबिटीज और फिर डायबिटीज रिवर्सल हो जाती है तो उनमें इसके दोबारा होने का खतरा अधिक होता है। ऐसा आनुवंशिक कारण से भी होता है।

दूसरा, युवा होने से उनका जीवनकाल अधिक है, ऐसे में 40 के बाद फिर से होने का खतरा बढ़ जाता है।

B-बीएमआई अधिकः मोटापे और दोबारा डायबिटीज की चपेट में आने के खतरे में सीधा सम्बंध है।

C -सी-पेप्टाइट लेवल: इस हार्मोन का स्तर जितना अधिक होता है, अग्नाशय उतनी बेहतरी से काम करता है। जिनका अग्नाशय पहले ही क्षतिग्रस्त है।

अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें :-

डॉ. हारून  इकबाल (वरिष्ठ फिजिशियन )

मेडीविन क्लीनिक – निकट दुल्हा मियां का मज़ार,

बरेली । मो. 9897802786

By Anurag

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