
25 जून 1975 को लोकतंत्र की हत्या कर देश में तानाशाही स्थापित की गई थी। । इसका ताना-बाना 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सेना द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री के खिलाफ दिया गया फैसला बन गया पुरानी यादों को ताजा करते हुए लोकतंत्र सेनानी वीरेंद्र कुमार अटल ने बताया कि 1971 के लोकसभा चुनाव में स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने चुनाव लड़ा था। जोकि एक लाख वोटों से चुनाव हार गए थे। राज नारायण जी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में धांधली कर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है इसलिए उनका चुनाव रद्द करने की मांग की। उक्त याचिका पर सुनवाई करते हुए 18 मार्च 1975 को इंदिरा गांधी को स्वयं हाईकोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया गया। 12 जून 1975 को हाईकोर्ट में दोपहर 11:00 बजे निर्णय सुनाने का निश्चय किया गया था। कोर्ट नंबर 24 में केवल पास धारकों को ही जाने की अनुमति थी। ठीक 11:00 बजे जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इंदिरा गांधी ने भ्रष्ट तरीके अपनाते हुए चुनाव जीता है। इसलिए इनका चुनाव रद्द किया जाता है और साथ ही 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया। यह सुनते ही कांग्रेसमें सन्नाटा छा गया था कोई भी नेता इस पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं था। यदि कहां जाए तो सभी कांग्रेसी नेताओं को इस विषय पर बोलने की मनाही थी। कांग्रेसी ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 25 जून को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कृष्णा अय्यर ने सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को रद्द करने से मना कर दिया। हां इतना अधिकार इंदिरा गांधी को जरूर दिया गया कि वह संसद का सदस्य तो रह सकती हैं। पर सदन के किसी भी बिल पर उनको वोट देने का अधिकार नहीं होगा। उसी दिन आधी रात को देश में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर तानाशाही का राज स्थापित कर दिया। इस तानाशाही में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का जहां हनन किया गया वही प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई। इसलिए कहा जाए तो 12 जून 1975 के दिन ही आपातकाल लगाने का ताना-बाना बुन दिया गया था