
बिथरी विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी का किला मजबूत माना जा रहा था अल्का सिंह के कांग्रेस में शामिल होने का असर कहीं न कहीं भाजपा पर भी पड़ा है तो वहीं, सपा की मुश्किलें भी बढ़ी हैं लेकिन सपा के पूर्व जिला अध्यक्ष और पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव की जगह अगम मौर्य को टिकट दिये जाने के बाद यहां भी समीकरण बदलने लगे। । अल्का सिंह के साथ बड़ी तादाद में उनके समर्थक भी भाजपा से अलग होकर कांग्रेस में आ गए, पप्पू भरतौल के समर्थकों की नाराजगी झेल रही भाजपा और कमजोर हुई। अल्का सिंह की बिरादरी भी भाजपा का वोट बैंक माना जाता था लेकिन अल्का सिंह के कांग्रेस में शामिल होने के बाद ठाकुर मतदाता अपनी बेटी के पक्ष में एकजुट होता दिखाई दे रहा है। दलितों और पिछड़ों के बीच भी अल्का सिंह गहरी पैठ रखती हैं। इनमें ज्यादातर दलित और पिछड़े मतदाता बसपा के आशीष पटेल के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में भाजपा को उनका कोई लाभ नहीं मिलने वाला। वीरपाल समर्थक यादव वोट भी अपने नेता का टिकट कटने के बाद विकल्प के तौर पर कांग्रेस को ही देख रहा है। इसका जीता-जागता उदाहरण वीरपाल के करीबी पूर्व डिप्टी मेयर और सपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष डा. मोहम्मद खालिद के रूप में देखा जा सकता है। डा. खालिद कभी वीरपाल सिंह यादव के चुनाव प्रभारी भी हुआ करते थे लेकिन वर्तमान में वह अल्का सिंह के चीफ इलेक्शन एजेंट होने के साथ ही उनके चुनाव का पूरा काम देख रहे हैं। यही वजह है कि वीरपाल के समर्थक भी अल्का सिंह को विकल्प के रूप में देखने लगे हैं।

इस सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है। बरेली जिले की सियासत में मुस्लिमों के सबसे बड़े नेता के रूप में मौलाना तौकीर रजा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। मौलाना तौकीर रजा अब कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। शहाबुद्दीन का साथ भी अल्का सिंह को मिल गया है और डा. मोहम्मद खालिद पहले ही अल्का सिंह के साथ हैं। ऐसे में बिथरी सीट पर बड़े उलटफेर की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। चूंकि अल्का सिंह के साथ ठाकुर वोट बैंक के साथ ही भाजपा से टूटा हुआ वोट बैंक भी है इसलिए वह अन्य दलों के उम्मीदवारों के मुकाबले भाजपा को सीधी टक्कर देती नजर आ रही हैं। अगर मुस्लिम वोट एकतरफा अल्का सिंह के पक्ष में पड़ता है तो उनकी जीत सुनिश्चित है