बरेली दर्शन

बरेली को नाथों की नगरी कहा जाता है बरेली शहर की चारों दिशाओं में भोलेनाथ के सात दरबार होने के कारण इस शहर को सप्तनाथ नगरी / नाथ नगरी भी कहा जाता है। भगवान शिव के यह सात मंदिर पौराणिक महत्व के हैं। हर मंदिर के पीछे एक पुरातन कहानी जुड़ी है। सैकड़ों साल पहले से आज तक, इन मंदिरों हर शिवभक्त की आस्था जुड़ी है। सावन में हरिद्वार और कछला से गंगा जल लाकर इन मंदिरों में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है।

टीवरीनाथ (त्रिवटीनाथ), प्रेमनगर

धोपेश्वरनाथ, कैंट

अलखनाथ, किला

-बनखंडीनाथ, जोगीनवादा

मढ़ीनाथ, मढ़िनाथ,

तपेश्पर नाथ, सुभाषनगर

पशुपति नाथ, यूनीवर्सिटी के सामने

बनखंडीनाथ मंदिर कहा जाता है कि महारानी द्रोपदी ने पूर्व दिशा में अपने गुरु के आदेश पर शिवलिंग स्थापित कर कठोर तप किया था। उस वक्त जोगीनवादा क्षेत्र में घना जंगल होता, इस कारण मंदिर का बनखंडीनाथ पड़ गया। मंदिर के मंहत बताते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने और राज्यों की तरह यहां भी मंदिर को गिराने का पूरा प्रयास किया। लेकिन, वह मंदिर की एक भी ईंट गिरा नहीं सका। तभी से यह मंदिर वनखंडी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि मंदिर के आसपास वन ही वन हुआ करता था। इसलिए इसका नाम वनखंडीनाथ पड़ा।

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मढ़ीनाथ-शहर के पश्चिम दिशा में स्थित इस शिवालय के बारे में भी प्राचीन कहानी है। एक तपस्वी ने राहगीरों की प्यास बुझाने के लिए यहां कुआं खोदना शुरू किया था तभी शिवलिंग प्रकट हुआ। ऐसा शिवलिंग जिस पर मढ़ीधारी सर्प लिपटा था। जिसके बाद यहां मंदिर स्थापना हुई और नाम रखा गया मढ़ीनाथ मंदिर। अब इस मंदिर के आसपास के क्षेत्र को मढ़ीनाथ मुहल्ला के नाम से जाना जाता है।

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त्रिबटीनाथ: उत्तर दिशा में स्थित मंदिर सन् 1474 में हुआ। बताया जाता है कि उस वक्त वहां वन क्षेत्र था। एक चरवाह तीन वट वृक्षों के नीचे विश्राम कर रहा था। उस वक्त स्वप्न में भोलेनाथ आए और उस स्थान की खोदाई करने को कहा। त्रिवट के नीचे खोदाई की तो शिवलिंग प्रकट हुआ। तीन वटों के नीचे शिवलिंग मिलने से इस मंदिर का नाम त्रिवटी नाथ पड़ गया।

तपेश्पर नाथ: शहर के दक्षिण दिशा में स्थित यह मंदिर ऋषियों की तपोस्थली रहा। उन्होंने कठोर तप कर इस देवालय को सिद्ध किया इसलिए नाम तपेश्वरनाथ मंदिर पड़ा।

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धोपेश्वर नाथ: पूर्व दक्षिण अग्निकोण में स्थापित इस मंदिर को महाराजा दु्रपद के गुरु एवं अत्री ऋषि को शिष्य धू्रम ऋषि ने कठोर तप से सिद्ध किया। उन्हीं के नाम पर देवालय का नाम धूमेश्वर नाथ पड़ा जोकि बाद में धोपेश्वर नाथ के नाम से जाना जाने लगा।

 

अलखनाथ: आनंद अखाड़ा के अलखिया बाबा ने इस स्थान पर कठोर तप किया। शिवभक्तों के लिए अलख जगाई। उन्हीं के नाम से जोड़कर इस मंदिर का नाम अलखनाथ पड़ा।

 

पशुपतिनाथ: पशुपतिनाथ का मंदिर वैसे तो लोग नेपाल में ही जानते हैं। लेकिन नाथनगरी के नाम से जाने वाली बरेली में सात नाथ मंदिरों में एक पशुपतिनाथ का भी मंदिर है। यह मंदिर पीलीभीत बाईपास-बीसलपुर चौराहा के पास स्थित है। इस मंदिर की भी पुरानी मान्यता है। इस मंदिर में रामेश्वरम के रामसेतु से लाया गया पत्थर भी है। जो कि आज भी तैर रहे हैं। इस मंदिर परिसर में भगवान शिव के 108 नामों को समर्पित 108 शिवलिंग हैं। इस मंदिर की स्थापना में जगतगुरु शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती भी आए थे। जानकार लोग बताते हैं कि पीलीभीत बाईपास पर स्थित इस मंदिर को वर्ष 2003 में शहर के एक बिल्डर ने बनवाया था। यहां का शिवलिंग पशुपतिनाथ (नेपाल) के समान ही पंचमुखी है। यहां भैरव मंदिर भी है। मंदिर के चारों ओर सरोवर है। इसे बनाने में एक वर्ष का समय लगा, लेकिन अब इस मंदिर की ख्याति आसपास के जिलों तक पहुंच चुकी है। नेपाल मंदिर की तर्ज पर यहां भी मुख्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। इसके साथ ही मंदिर के चारों ओर उपस्थित जलाशय यहां आने वालों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में ही कैलाश पर्वत  बनाया गया है। जिसमें गिरने वाली जलधारा देखते ही बनती है। मंदिर परिसर में रुद्राक्ष और चंदन के वृक्ष भी लगे हुए हैं। जिनकी शोभा मंदिर में चार चांद लगा देती है। सबसे अधिक भीड़ मंदिर में सावन में लगती है।

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